दुनिया-जगत

कनाडा का आरोप- भारत ने करवाई सिख नेता की हत्या

दिल्ली: कनाडा ने भारत पर बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं। संसद में पीएम जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि हरजीत सिंह निज्जर की हत्‍या में भारतीय एजेंट्स का लिंक सामने आया है।

निज्जर खालिस्तानी आतंकी था जिसकी 18 जून को ब्रिटिश कोलंबिया में हत्या कर दी गई थी।

ABC न्यूज के अनुसार, कनाडा ने एक टॉप भारतीय डिप्लोमैट को निष्कासित कर दिया है। विदेश मंत्री मेलनी जॉली के अनुसार, कनाडा में भारतीय इंटेलिजेंस के प्रमुख को निष्‍काषित किया गया है। ट्रूडो को सोशल मीडिया पर अपने इस फैसले के लिए आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। बिना पर्याप्त सबूत के इतना गंभीर आरोप लगाना और ऐक्‍शन लेना लोगों के गले नहीं उतर रहा। कुछ ने तो ट्रूडो पर कनाडा को आतंकियों की शरणस्थली पाकिस्तान जैसा बनाने का आरोप लगा दिया।

कनाडा के पीएम हैं या खालिस्‍तान के प्रवक्‍ता?
ट्रूडो ने सोमवार को संसद में कहा कि कनाडाई खुफिया एजेंसियां निज्‍जर की हत्‍या के बाद से इन 'विश्‍वसनीय' आरोपों की जांच कर रही थी। उन्‍होंने कहा कि नई दिल्‍ली में जी20 शिखर सम्‍मेलन के समय उन्‍होंने यह मुद्दा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने भी उठाया था। ट्रूडो ने कहा कि उन्‍होंने मोदी से कहा था कि भारत की संल‍िप्‍तता स्‍वीकार नहीं होगी और जांच में सहयोग मांगा था। कनाडा के पीएम जिस लाइन पर चल रहे हैं, वही लाइन खालिस्तान के समर्थकों की है। अगले महीने कनाडा में होने वाले जनमत संग्रह के दूसरे चरण में वोटर्स से पूछा जाएगा कि क्या जून में कट्टरपंथी सिख नेता निजर की मौत के लिए भारतीय उच्चायुक्त जिम्मेदार है।

अपने ही देश में घिर गए ट्रूडो
ट्रूडो का यह फैसला भारत और कनाडा के राजनयिक संबंधों को रसातल में पहुंचा सकता है। वह अपने देश में ही आलोचना झेल रहे हैं। सोमवार को संसद में जब ट्रूडो ने यह बात बताई, उसके बाद से वह सोशल मीडिया के निशाने पर हैं। बाकी दुनिया के लोग भी हैरान हैं कि आखिर कनाडा क्यों भारत से रिश्ते खराब करने पर तुला है! जिल टॉड ने लिखा, 'यह नन्हा वामपंथी क्यों भारत से लड़ाई मोल लेना चाहता है?' एक अन्‍य X यूजर ने लिखा, 'कनाडा में चीनी पुलिस थानों ने जांच की और बताया कि यह भारत ने किया।' वहीं, दूसरे ने कहा, 'बधाई हो कनाडा के लोगों, आप पाकिस्तान के साथ जुड़ गए हो जो अब तक आतंकियों को पनाह देने वाला इकलौता देश था। जस्टिन ट्रूडो कनाडा को उस रास्ते पर ले जा रहे हैं जिस पर पाकिस्तान दशकों पहले चला था।।'

कनाडा में भारतीय डिप्‍लामैट्स को भारी खतरा
18 जून को निज्जर की हत्‍या के बाद कनाडा में पोस्टर युद्ध छिड़ गया। भारतीय राजनयिकों और प्रतिष्ठानों को धमकी दी गई। उनकी मौत के लिए उच्चायुक्त संजय वर्मा और वैंकूवर और टोरंटो में महावाणिज्य दूत को जिम्मेदार ठहराया गया। पोस्टर में बंदूक के साथ प्रतिबंधित संगठन सिख्स फॉर जस्टिस का नाम और मृत अलगाववादी नेता हरदीप सिंह निज्जर की तस्वीरें भी थीं। इसमें 1985 के एयर इंडिया फ्लाइट ब्लास्ट के मास्टरमाइंड तलविंदर सिंह परमार की तस्वीरें भी थीं।

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रूस बना गेहूं का नंबर 1 निर्यातक, ये है वजह...

दिल्ली: रूस में लगातार दूसरे सीजन में भी गेहूं की बंपर पैदावार हुई। इसके चलते यह देश दुनिया का सबसे बड़ा यानी नंबर 1 निर्यातक देश बन गया।

एक तरफ जहां रूस की दमदार फसल निर्यातक के रूप में देश की स्थिति को मजबूत कर रही है वहीं दूसरी ओर, यह यूक्रेन पर आक्रमण की वजह से कीमत पर बढ़े दबाव को भी कम कर रही है। इसका मतलब यह है कि सप्लाई बढ़ने की वजह से देश को सस्ते में गेहूं मिल जा रहा है।

रूस के सबसे बड़े निर्यातक बनने की एक और वजह यूक्रेन पर पाबंदी
समाचार एजेंसी ब्लूमबर्ग ने बताया कि रूस के साथ युद्ध की वजह से यूक्रेन के बंदरगाहों पर नाकाबंदी हो गई है और लगातार बमबारी जारी है, जिसकी वजह से यूक्रेन का खाद्य निर्यात रुक गया है। और यही वजह है कि वैश्विक गेहूं बाजार में रूस को अपना प्रभुत्व मजबूत करने में मदद मिली है। यह रिकॉर्ड रूसी शिपमेंट को जानकर समझा जा सकता है क्योंकि देश के व्यापारियों ने आक्रमण के बाद सामना की गई फाइनैंशिंग और लॉजिस्टिक संबंधी चुनौतियों पर काबू पा लिया है।

हालांकि, रूस के खचाखच भरे अनाज बंदरगाहों ने लागत के संकट से जूझ रहे गेहूं उपभोक्ताओं के लिए एक उम्मीद की किरण भी पैदा की है क्योंकि इस समय गेहूं की कीमतें लगभग तीन वर्षों में सबसे कम हैं।

खुद के खजाने भरने के लिए रूस ने बढ़ा दी कीमत
रूस स्थिति का फायदा उठाने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है और ऐसे में अपने खुद के खजाने को भरने के लिए गेहूं की कीमतों में बढ़ोतरी कर रहा है। लेकिन इन सबके बावजूद, जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था तब जितना दाम था, उसकी भी आधी से कम कीमत पर शिकागो बाजार कारोबार कर रहा है। बता दें कि आक्रमण के बाद गेहूं की कीमत उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी।

स्ट्रैटेजी ग्रेन्स के अनाज-बाजार एनॉलिस्ट हेलेन डुफ्लोट ने ब्लूमबर्ग को बताया, ‘रूसी गेहूं के लिए बहुत सारे प्रतिस्पर्धी नहीं हैं। रूस इस समय प्राइस मेकर है।’ यानी रूस के लिए इस समय कोई मुकाबले में नहीं है और रूस का कीमत डिसाइड करने में इकलौता राज है।

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वियतनाम में 9 मंजिला इमारत में आग, 50 की मौत

दिल्ली: वियतनाम की राजधानी हनोई में बुधवार को एक अपार्टमेंट में अचानक भीषण आग लग गई। जिसमें 50 लोगों की जलने से दर्दनाक मौत हो गई। इसके अलावा 50 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हो गए. सूचना पर पहुंची स्थानीय पुलिस ने घायलों को आनन-फानन में अस्पताल में भर्ती कराया। जहां उनका इलाज चल रहा है।

50 लोगों की जलने से मौत
एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, वियतनाम समाचार एजेंसी ने जानकारी देते हुए बताया कि 13 सितंबर की रात को करीब 2 बजे अपार्टमेंट में अचानक आग लग गई। जिसमें 50 लोगों की जलने से मौत हो गई। आग नौ मंजिला इमारत में लगी. जिसमें 150 लोग रहते थे।

अपार्टमेंट में मौजूद थे 150 लोग
खबरों के अनुसार जिस अपार्टमेंट में आग लगी थी वह काफी तंग गली में स्थित था। जिससे फायर ब्रिगेड और अन्य बचाव दल को पहुंचने में भी काफी दिक्कत हो रही थी। फायर ब्रिगेड की टीम ने कड़ी मशक्कत के बाद लोगों को बाहर निकाला और उन्हें अस्पताल पहुंचाया। राहत-बचाव का कार्य तेजी के साथ चल रहा है। 70 लोगों को अपार्टमेंट से बाहर निकाला गया है। जिसमें से 54 लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

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अमेरिका में 9/11 हमले के 22 साल बाद भी 1,000 से ज्यादा मृतकों की नहीं हो पाई पहचान !

न्यूयॉर्क: अमेरिका में 9/11 आतंकवादी हमले की 22वीं बरसी के मौके पर बड़ी संख्या में लोगों ने मृतकों को श्रद्धांजलि दी। रिपोर्ट के अनुसार, इस मौके पर न्यूयॉर्क के लोअर मैनहट्टन में मेमोरियल एंड म्यूजियम में एक स्मृति समारोह आयोजित किया गया, जहां 11 सितंबर 2001 के हमलों में मारे गए 2,977 लोगों को श्रद्धांजलि दी गई। बरसी से कुछ दिन पहले, अमेरिकी धरती पर सबसे घातक आतंकवादी हमले के दो पीड़ितों - एक पुरुष और एक महिला, जिनके नाम उनके परिवारों के अनुरोध पर गुप्त रखे गए - की पहचान की घोषणा की गई।

मेयर कार्यालय के एक बयान के अनुसार, दो नई पहचानें न्यूयॉर्क शहर की डीएनए लेबोरेटरी द्वारा एडवांस टेस्टिंग का उपयोग कर 2001 के बाद से पहचाने गए 1,648वें और 1,649वें व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं। वे सितंबर 2021 के बाद से वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पीड़ितों की पहली नई पहचान है। हालांकि, 1,104 मृतक यानी मरने वालों में से 40 प्रतिशत की पहचान नहीं हो पाई है। ग्राउंड जीरो से संबंधित स्वास्थ्य जटिलताओं से मरने वाले 9/11 के प्रथम उत्तरदाताओं की संख्या हमलों के दौरान मरने वाले प्रथम उत्तरदाताओं की संख्या के लगभग बराबर है।

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ब्राजील में उष्णकटिबंधीय चक्रवात से 44 लोगों की मौत

साओ पाउलो: दक्षिणी ब्राजील में पिछले हफ्ते आए एक अतिरिक्त उष्णकटिबंधीय चक्रवात के बाद कुल 44 लोगों की मौत हो गयी और 46 अन्य लापता हो गए। नागरिक सुरक्षा एजेंसी ने रविवार को यह जानकारी दी। चक्रवात के कारण अर्जेंटीना और उरुग्वे की सीमा से लगे रियो ग्रांडे डो सुल राज्य के लगभग 60 शहरों और पड़ोसी राज्य सांता कैटरीना के कुछ क्षेत्रों में सोमवार से मूसलाधार बारिश, बाढ़, 110 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक की हवाएं चली और भूस्खलन शुरू हो गया।

रिपोर्ट के मुताबिक एक को छोड़कर सभी मौतें रियो ग्रांडे डो सुल में हुईं, जहां 224 लोग घायल हो गए और 14,000 से अधिक लोगों को निकाला गया। सबसे बुरी तरह प्रभावित शहर म्यूकम है जहां 16 लोगों की मौत हुई और रोका सेल्स में 10 लोगों की मौत हुई। ब्राज़ील के उपराष्ट्रपति गेराल्डो एल्कमिन ने शुक्रवार को चक्रवात से प्रभावित प्रत्येक व्यक्ति को लगभग 160 अमेरिकी डॉलर का मुआवजा देने की सरकार की योजना की घोषणा करने के बाद रविवार को इस क्षेत्र का दौरा किया।

राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला डी सिल्वा ने भारत से बोलते हुए चरम मौसम की घटना को जलवायु परिवर्तन के परिणामों से निपटने के लिए आवश्यक पर्यावरणीय एजेंडे से जोड़ा। श्री सिल्वा भारत में जी20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने आए हुए थे।

 

 

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मोदी ने मोरक्को में भूकंप की घटना पर संवेदना जतायी

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मोरक्को में बीती रात आये शक्तिशाली भूकंप में मारे गये लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए संकट की इस घड़ी में हर संभव मदद का भरोसा दिया है।

श्री मोदी ने आज सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, मोरक्को में भूकंप के कारण हुई जानमाल की हानि से अत्यंत दुख हुआ। इस दुखद घड़ी में मेरी संवेदनाएं मोरक्को के लोगों के साथ हैं। उन लोगों के प्रति संवेदना जिन्होंने अपने प्रियजनों को खोया है। घायल जल्द से जल्द ठीक हो जाएं। भारत इस कठिन समय में मोरक्को को हर संभव मदद देने के लिए तैयार है।

उल्लेखनीय है कि मोरक्को में बीती रात आये शक्तिशाली भूकंप से करीब 300 लोगों की मौत हो गयी और कई लोगों के घायल होने तथा इमारते ध्वस्त होने की रिपोर्ट है।

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किम जोंग-उन अर्धसैनिक परेड में शामिल

सियोल: उत्तर कोरिया ने अपने शासन के स्थापना दिवस की 75वीं वर्षगांठ मनाने के लिए शनिवार को प्योंगयांग में अर्धसैनिक परेड का आयोजन किया, जिसमें नेता किम जोंग-उन भी मौजूद रहे। सरकारी मीडिया ने यह जानकारी दी। किम ने स्थापना की सालगिरह का जश्न मनाने के लिए किम इल सुंग स्क्वायर पर "शानदार" तरीके से आयोजित सैन्य परेड का अवलोकन किया।

रिपोर्ट के अनुसार, किम ने उस कार्यक्रम में भाषण नहीं दिया, जिसमें उनकी बेटी भी शामिल हुई थी, जिसका नाम जू-ए बताया जा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वाइस प्रीमियर लियू गुओझोंग के नेतृत्व में एक चीनी प्रतिनिधिमंडल और रूसी सेना के गीत और नृत्य समूह के सदस्य भी मौजूद थे। रूस ने इस बार अलग से प्रतिनिधिमंडल नहीं भेजा!

रात के समय होने वाला यह आयोजन इस साल अकेले उत्तर कोरिया द्वारा आयोजित तीसरी सैन्य परेड का प्रतीक है। यह परेड उन अटकलों के बीच हुई कि किम संभावित हथियार सौदे पर चर्चा करने के लिए अगले सप्ताह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मिलने के लिए व्लादिवोस्तोक की यात्रा कर सकते हैं।

रूस की उनकी संभावित यात्रा की एक रिपोर्ट में अटकलें लगाई गई हैं कि उत्तर कोरिया रूस से हथियारों से संबंधित प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के बदले में यूक्रेन के साथ मास्को के युद्ध में उपयोग के लिए तोपखाने के गोले और अन्य गोला-बारूद प्रदान कर सकता है।

केसीएनए के अनुसार, नवीनतम अर्धसैनिक परेड में उच्च गतिशीलता वाली मोटरसाइकिलों के काफिले और ट्रैक्टरों द्वारा खींचे गए एंटी-टैंक मिसाइल लांचर शामिल थे। परेड का नेतृत्व ज्यादातर वर्कर-पीजेंट रेड गार्ड्स ने किया, जो उत्तर में एक नागरिक रक्षा संगठन है, इसमें लगभग 5.7 मिलियन श्रमिक और किसान शामिल हैं।

उत्तर कोरिया के सरकारी कोरियन सेंट्रल ब्रॉडकास्टिंग स्टेशन ने कहा कि पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेताओं ने प्रमुख वर्षगांठ के अवसर पर किम को बधाई संदेश भेजे हैं।

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बाइडन का कोरोना टेस्ट निगेटिव, शुक्रवार को करेंगे पीएम मोदी से भेंट

 दिल्ली: अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन भी जी-20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने भारत आ रहे हैं। इससे पहले प्रोटोकॉल का पालन करते हुए बाइडन ने अपना एक और कोरोना टेस्ट करवाया, जिसकी रिपोर्ट निगेटिव रही।

शीर्ष अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति शिखर सम्मेलन के लिए गुरुवार को भारत की यात्रा करेंगे और शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ द्विपक्षीय बैठक करेंगे।

उल्लेखनीय है कि जी-20 देशों का शिखर सम्मेलन 9 और 10 सितंबर को राजधानी दिल्ली में आयोजित होने जा रहा है। दिल्ली सज कर पूरी तरह तैयार है। मेहमानों को प्रतीक्षा है। सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त हैं।

इस बीच, केंद्र सरकार ने बताया कि 9 और 10 सितंबर को राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन के मद्देनजर कुछ सरकारी कार्यालयों को सुरक्षा जांच के लिए बंद किया जाएगा। कार्मिक मंत्रालय ने उन कार्यालयों की सूची साझा की जिन्हें बंद रखा जाएगा।

इनमें दूरदर्शन टावर-1, दूरदर्शन टावर-2, भारत संचार भवन, चुनाव आयोग कार्यालय, विदेश मंत्रालय कार्यालय, केजी मार्ग, शिल्प संग्रहालय, राष्ट्रीय विज्ञान केंद्र, इंडिया गेट और पटियाला हाउस कोर्ट शामिल हैं।

G-20 सम्मेलन के दौरान अचूक सुरक्षा सुनिश्चित करने के प्रयासों के तहत इन इमारतों को आठ सितंबर को सुबह नौ बजे खाली करना आवश्यक है, ताकि जांच पूरी की जा सके। कार्मिक मंत्रालय ने पिछले महीने के अंत में जारी आदेश में कहा कि जी-20 शिखर सम्मेलन के मद्देनजर राष्ट्रीय राजधानी में सभी केंद्रीय सरकारी कार्यालय आठ से 10 सितंबर तक बंद रहेंगे।

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चंद्रयान-3 की सफलता से पश्चिमी देशों का चिढ़ना दर्शाता है कि भारत सही दिशा में आगे बढ़ रहा है

 अंततः भारत चल पड़ा है विश्व गुरु बनने की राह पर। परंतु, पश्चिमी देशों में कुछ विघनसंतोषी जीवों को शायद यह रास नहीं आ रहा है क्योंकि भारत, ब्रिटेन का कभी औपनिवेशिक देश रहा है और इन देशों की नजर में यह कैसे हो सकता है कि ब्रिटेन के चन्द्रमा पर पहुंचने के पूर्व ही उनका एक पूर्व औपनिवेशक देश अपना चन्द्रयान-3 सफलता पूर्वक चन्द्रमा पर उतार ले। भारत, पूरे विश्व में, पहला देश है जिसने चन्द्रयान-3 को चन्द्रमा के दक्षिणी पोल पर सलतापूर्वक उतार लिया है। अन्यथा, विश्व का कोई भी देश, अमेरिका, रूस एवं चीन सहित, अभी तक चन्द्रमा के दक्षिणी पोल पर अपना यान उतारने में सफल नहीं हो सका है। निश्चित ही भारत की यह सफलता न केवल भारत के लिए बल्कि विश्व के समस्त देशों के लिए गर्व का विश्व होना चाहिए। यदि चन्द्रयान-3 अपने उद्देश्यों में सफल हो जाता है तो यह विश्व की भी उपलब्धि होगी। चन्द्रमा पर पानी उपलब्ध है अथवा नहीं, चन्द्रमा पर किस प्रकार के खनिज पदार्थ (सोना, प्लेटिनम, टाइटेनियम, यूरेनियम, आदि), रासायनिक पदार्थ, प्राकृतिक तत्व, मिट्टी एवं अन्य तत्व पाए जाते हैं, आदि का पता लगने पर क्या इस जानकारी का लाभ केवल भारत को ही होने जा रहा है अथवा क्या विश्व के अन्य देश भी इस जानकारी का लाभ उठा सकने की स्थिति में नहीं होंगे? परंतु, पश्चिमी देशों में कुछ तत्व भारत की इस महान उपलब्धि को सकारात्मक दृष्टि से न देखते हुए इस संदर्भ में अपनी नकारात्मक सोच को आगे बढ़ाते हुए दिखाई दे रहे है और सम्भव है कि भारत के प्रति उनकी यह नकारात्मक सोच इन देशों के लिए भविष्य में हानिकारक सिद्ध हो।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक कार्टून छापा है जिसमें बताया गया है कि विशिष्ट वर्ग के दो नागरिक एक कक्ष (कैबिन) में बैठे हैं एवं इनमें से एक संभ्रांत व्यक्ति एक अखबार में भारत के मंगल मिशन के सम्बंध में जानकारी पढ़ रहा है। इस कक्ष के बाहर भारतीय गरीब किसान के रूप में एक गाय को लेकर एक व्यक्ति दरवाजे के बाहर खड़ा है, जो दरवाजे पर दस्तक देता हुआ दिखाई दे रहा है। इस कार्टून से ऐसा महसूस कराए जाने का प्रयास किया जाना प्रतीत हो रहा है कि जैसे एक गरीब भारत देश, पश्चिमी देशों से अपने मंगल मिशन के लिए सहायता मांग रहा हो। संभवत: भारत के चन्द्रयान-3 की सफलता को पश्चिमी देशों में कुछ तत्व पचा नहीं पा रहे हैं।

एक ब्रिटिश पत्रकार पेट्रिक क्रिस्टी ने भारत को चन्द्रयान-3 को चन्द्रमा के दक्षिणी पोल पर सफलता पूर्वक उतारे जाने की बधाई देते हुए यह मांग की है कि ब्रिटेन द्वारा भारत को उपलब्ध कराई जा रही आर्थिक सहायता राशि को वापस लिया जाना चाहिए क्योंकि उसके अनुसार चूंकि भारत की आधी आबादी गरीबी का जीवन जी रही है अतः ब्रिटेन द्वारा भारत को दी जा रही आर्थिक सहायता राशि का उपयोग भारत में गरीबी मिटाने के उद्देश्य से न किया जाकर अंतरिक्ष में अपने चन्द्रयान भेजने के लिए किया जा रहा है। इस ब्रिटिश पत्रकार का दावा है कि ब्रिटेन द्वारा भारत को वर्ष 2016 से वर्ष 2021 के बीच 230 करोड़ ब्रिटिश पाउंड की राशि आर्थिक सहायता के रूप में उपलब्ध कराई गई है। उक्त पत्रकार का यह भी कहना है कि यदि भारत अपने राकेट को अंतरिक्ष में भेज रहा है तो भारत को ब्रिटेन के पास कटोरा लेकर मदद के लिए नहीं आना चाहिए। जबकि इस संदर्भ में वास्तविकता यह है कि भारत कभी भी ब्रिटेन के पास आर्थिक सहायता मांगने के लिए गया ही नहीं है। इस संदर्भ में ब्रिटेन द्वारा सरकारी तौर पर उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार ब्रिटेन ने भारत को किसी भी प्रकार की वित्तीय सहायता उपलब्ध नहीं कराई है परंतु ब्रिटेन ने वर्ष 2015 के बाद से भारत में व्यवसाय को बढ़ावा देने के उद्देश्य से निवेश जरूर किया है ताकि भारत के बाजार में ब्रिटेन का योगदान बढ़ सके एवं ब्रिटेन के नागरिकों के लिए रोजगार के अवसर निर्मित हो सकें।

यह भी एक वास्तविकता है कि भारत आज विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है और इस संदर्भ में हाल ही में भारत ने ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ते हुए अपनी अर्थव्यवस्था को आकार में ब्रिटेन से भी बड़ी अर्थव्यवस्था बना लिया है। परंतु, कुछ ब्रिटिश राजनीतिज्ञ एवं पत्रकार इस तथ्य को स्वीकार ही नहीं कर पा रहे हैं और वे अपनी साम्राज्यवादी सोच से भी बाहर नहीं आ पा रहे हैं। ऐसे तत्व आज भी भारत को अपनी एक कालोनी (उपनिवेश) के रूप में ही देख रहे हैं और सोच रहे हैं कि भारत कैसे ब्रिटेन से पहले चन्द्रमा पर पहुंच सकता है। जबकि आज वस्तुस्थिति यह है कि ब्रिटेन की आर्थिक हालत इतनी अधिक खराब हो गई है कि ब्रिटेन के नागरिकों को अपने बिजली के बिल का भुगतान करने के लिए भी ऋण लेना पड़ रहा है।

पश्चिमी देशों को अब यह समझना होगा कि यह 21वीं सदी है एवं वैश्विक पटल पर भारत अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए आगे बढ़ चुका है। यह पश्चिमी देशों के हित में ही होगा कि वे भारत की विकास यात्रा में भागीदार बनें एवं अपने आर्थिक हितों को भी बल प्रदान करें, इस बात को जितनी जल्दी समझें उनके लिए उतना ही अच्छा है क्योंकि अन्यथा वे स्वयं के आर्थिक हितों को नुक्सान ही पहुंचा रहे होंगे। क्या ब्रिटेन इस बात को भूल गया है कि औपनिवेशक खंडकाल में उसने भारत पर शासन के दौरान वर्ष 1765 से लेकर वर्ष 1938 तक भारत से 45 लाख करोड़ पाउंड की लूट की है (यह तथ्य एक अधय्यन प्रतिवेदन में सामने आया है), हो सकता है यह राशि और भी अधिक रही हो। परंतु, उक्त राशि भी ब्रिटेन के सकल घरेलू उत्पाद का 15 गुणा है। उक्त राशि को ब्रिटेन द्वारा भारत को लौटाए जाने पर भी विचार किया जाना चाहिए। ब्रिटेन द्वारा भारत में की गई भारी लूट के बावजूद भारत एक बार पुनः अब अपने पैरों पर खड़ा हो चुका है एवं भारत को अपने मिशन चन्द्रमा ग्रह, मिशन मंगल ग्रह एवं मिशन सूर्य ग्रह पर पश्चिमी देशों के दर्शन की आवश्यकता नहीं है। भारत को वैसे भी अब अंतरिक्ष के क्षेत्र में नित नयी सफलता की कहानियां गढ़ने की आदत पड़ चुकी है, और फिर चन्द्रमा के दक्षिणी पोल पर चन्द्रयान-3 को सफलता पूर्वक उतारना तो एक शुरुआत भर है।  

भारत का मिशन चन्द्रयान-3 तुलनात्मक रूप से बहुत किफायती रहा है। इस पूरे मिशन पर केवल लगभग 615 करोड़ रुपए की लागत आई है, जबकि अन्य देशों यथा अमेरिका, रूस एवं चीन की इस तरह के मिशनों पर हजारों करोड़ रुपए की लागत आती रही है। साथ ही, चन्द्रयान-3 ने 14 जुलाई 2023 को आन्ध्र प्रदेश के श्रीहरीकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अपनी यात्रा प्रारम्भ की थी और केवल 41 दिनों के बाद, 23 अगस्त 2023 को चन्द्रयान-3 ने चन्द्रमा के दक्षिणी पोल पर सफलता पूर्वक अपनी लैंडिंग सम्पन्न कर एक नया विश्व कीर्तिमान स्थापित किया है। इसरो ने चंद्रयान-3 की लैंडिंग के लिए चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव को इसलिए चुना क्योंकि सूर्य द्वारा कम प्रकाशित होने के संबंध में दक्षिणी ध्रुव को एक विशिष्ट लाभ प्राप्त है। इसरो के अध्यक्ष इस सम्बंध में कहते हैं कि चंद्रमा मिशन पर कार्य कर रहे वैज्ञानिकों ने दक्षिणी ध्रुव में बहुत रुचि दिखाई क्योंकि अंततः मनुष्य वहां जाकर उपनिवेश बनाना चाहते हैं और फिर उससे आगे की यात्रा करना चाहते हैं। इसलिए इसरो चन्द्रमा पर सबसे अच्छी जगह की तलाश कर रहा है और चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव में वह क्षमता है। चन्द्रयान-3 के प्रज्ञान रोवर के पास दो उपकरण हैं, दोनों चंद्रमा पर मौलिक संरचना के निष्कर्षों के साथ-साथ रासायनिक संरचनाओं से संबंधित हैं। अतः यह चन्द्रमा की सतह पर चक्कर लगाकर उक्त विषयों पर जानकारी भारत को उपलब्ध कराएगा।

वैसे भी देखा जाये तो अमेरिका के अंतरिक्ष केंद्र नासा में बड़ी संख्या में भारतीय मूल के इंजीनियर्स कार्यरत हैं जबकि भारत के अंतरिक्ष केंद्र इसरो में सम्भवत: एक भी अमेरिकी इंजीनियर कार्यरत नहीं है। अर्थात, पश्चिमी देशों के अंतरिक्ष से जुड़े विभिन्न मिशनों में भारतीयों का सीधा-सीधा योगदान रहता आया है। भारत के इसरो प्रमुख का तो यहां तक कहना है कि आधुनिक विज्ञान की उत्पत्ति वेदों से हुई है, परंतु पश्चिमी देशों ने इसे अपनी खोज की तरह प्रस्तुत किया है। अतः इस संदर्भ में कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अंतरिक्ष से जुड़े पश्चिमी देशों के विभिन्न मिशन अपरोक्ष रूप से भारत के सहयोग से ही चल रहे हैं जबकि इस क्षेत्र में भारत के विभिन्न मिशन अपने बलबूते पर चल रहे हैं। अब पश्चिमी देशों को इस वस्तुस्थिति से अवगत होना बहुत जरूरी है।

वैसे भी अंतरिक्ष के क्षेत्र में हाल ही के समय में भारत का एक तरह से वर्चस्व स्थापित होता दिखाई दे रहा है। आज पूरी दुनिया ही अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत का लोहा मानने लगी है। भारत ने इस क्षेत्र में अमेरिका, रूस एवं चीन जैसे देशों के एकाधिकार को तोड़ा है। भारत आज समूचे विश्व में सैटेलाइट के माध्यम से टेलीविजन प्रसारण, मौसम के सम्बंध में भविष्यवाणी और दूरसंचार जैसे क्षेत्रों में बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है और चूंकि ये सभी सुविधाएं उपग्रहों के माध्यम से ही संचालित होती हैं, अतः संचार उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने की मांग आज समस्त देशों के बीच बढ़ रही है। चूंकि भारतीय तकनीक तुलनात्मक रूप से बहुत सस्ती है अतः कई देश अब इस सम्बंध में भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इन परिस्थितियों के बीच चंद्रयान-3 की कम लागत में सफल लैंडिंग के बाद व्यवसायिक तौर पर भारत के लिए संभावनाएं पहले से अधिक बढ़ गयी है। आज भारतीय इसरो की, कम लागत और सफलता की गारंटी, सबसे बड़ी ताकत बन गयी है। अंतरिक्ष बाजार में भारत की धमक का यह स्पष्ट संकेत दिखाई दे रहा है और इस क्षेत्र में भारत एक धूमकेतु की तरह बनकर उभरा है। भारतीय इसरो अपने 100 से ज्यादा अंतरिक्ष अभियान, चन्द्रमा मिशन, मंगल मिशन, स्वदेशी अंतरिक्ष शटल, एवं चन्द्रयान-3 सहित, सफलतापूर्वक सम्पन्न कर चुका है।

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आदित्य मिशन: सूरज के अध्ययन में शामिल होगा भारत

 चंद्रयान के सकुशल अवतरण के बाद इसरो की तैयारी सूरज को पढ़ने की है। इसरो का आदित्य-L1 मिशन 2 सितंबर को प्रक्षेपित होने जा रहा है। इसे सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्री हरिकोटा से PSLV-XL रॉकेट द्वारा प्रक्षेपित किया जाएगा। यह अंतरिक्ष यान पृथ्वी से करीब 15 लाख किलोमीटर दूर सूर्य-पृथ्वी के बीच लैग्रांजे बिंदु-1 (L-1) की कक्षा में स्थापित किया जाएगा, जहां से यह सौर गतिविधियों की निगरानी करेगा। यह सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला भारतीय अंतरिक्ष अभियान होगा। गौरतलब है कि फिलहाल विभिन्न देशों के 20 से ज़्यादा सौर अध्ययन अंतरिक्ष मिशन अंतरिक्ष में मौजूद हैं। 

बताते चलें कि लैग्रांजे बिंदु अंतरिक्ष में दो पिंडों के बीच वे स्थान होते हैं जहां यदि कोई छोटा पिंड या उपग्रह रख दिया जाए तो वह वहां टिका रहता है। पृथ्वी-सूर्य प्रणाली के बीच ऐसे पांच बिंदु हैं। L1 बिंदु की कक्षा में स्थापित करने का फायदा यह है कि आदित्य-L1 बिना किसी अड़चन, ग्रहण वगैरह के सूर्य की लगातार निगरानी कर सकता है।

पृथ्वी से सूर्य की निगरानी और अवलोकन तो हम करते रहे हैं। लेकिन अंतरिक्ष से सूर्य के अवलोकन का कारण है कि पृथ्वी का वायुमंडल कई तंरगदैर्घ्यों और कणों को प्रवेश नहीं करने देता। इसलिए ऐसे विकिरण की मदद से होने वाले अवलोकन पृथ्वी से कर पाना संभव नहीं है। चूंकि अंतरिक्ष में ऐसी कोई बाधा नहीं है इसलिए अंतरिक्ष से इनका अवलोकन संभव है।   

आदित्य-L1 में सूर्य की गतिविधियां, सौर वायुमंडल (मुख्यत: क्रोमोस्फीयर और कोरोना) और अंतरिक्ष के मौसम का निरीक्षण करने के लिए सात यंत्र लगे हैं। इनमें से चार यंत्र बिंदु L1 पर बिना किसी बाधा के सीधे सूर्य का अवलोकन करेंगे, और शेष तीन यंत्र लैग्रांजे बिंदु L1 की स्थिति और कणों का जायज़ा लेंगे। आदित्य-L1 पर लगे विज़िबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (VELC) का काम होगा सूर्य के कोरोना और कोरोना से निकलने वाले पदार्थों का अध्ययन करना। कोरोना सूर्य की सबसे बाहरी सतह है जो सूर्य के तेज़ प्रकाश में ओझल रहती है। इसे विशेष उपकरणों से ही देखा जा सकता है। वैसे कोरोना को पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान देखा जा सकता है। सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (SUIT) पराबैंगनी प्रकाश में सूर्य के फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर की तस्वीरें लेगा और अल्ट्रावॉयलेट प्रकाश के नज़दीक सौर विकिरण विचलन मापेगा। फोटोस्फीयर या प्रकाशमंडल वह सतह है जहां से प्रकाश फैलता है। सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (SoLEXS) और हाई एनर्जी L1 ऑर्बाइटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (HEL1OS) सूर्य की एक्स-रे प्रदीप्ति का अध्ययन करेगा। आदित्य सोलर विंड पार्टीकल एक्सपेरिमेंट (ASPEX) और प्लाज़्मा एनालाइज़र पैकेज फॉर आदित्य (PAPA) सौर पवन, उसके आयन और ऊर्जा वितरण का अध्ययन करेगा। इसका एडवांस्ड ट्राय-एक्सिस हाई रिज़ॉल्यूशन डिजिटल मैग्नेटोमीटर L1 बिंदु पर मौजूद चुम्बकीय क्षेत्र का मापन करेगा।

प्रक्षेपण के करीब 100 दिन बाद आदित्य अपनी मंज़िल (L1) पर पहुंचेगा।

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हिमनदों के पिघलने से उभरते नए परितंत्र

 तेज़ी से बढ़ते वैश्विक तापमान का एक और बड़ा प्रभाव ऊंचे पहाड़ी (अल्पाइन) हिमनदों में देखा जा सकता है। हालिया अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन से विश्व भर के अल्पाइन हिमनद काफी तेज़ी से पिघल रहे हैं जिसके नतीजतन शताब्दियों से हिमाच्छादित भूमि के विशाल हिस्से उजागर हो सकते हैं। ऐसा माना जा रहा है कि इन उभरते हुए नए परितंत्रों का संरक्षण नई चुनौतियों के साथ-साथ नए अवसर भी देगा।

अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड के बाहर वर्तमान में अल्पाइन हिमनद लगभग 6.5 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले हुए हैं। गर्मियों में ये हिमनद लगभग दो अरब लोगों के अलावा वैश्विक परितंत्र को जल आपूर्ति करते हैं। ज़ाहिर है इनके पिघलने से वैश्विक परितंत्र पर काफी प्रभाव पड़ेगा।

शोधकर्ताओं ने इसके प्रभाव को समझने के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के विभिन्न स्तरों को ध्यान में रखते हुए एक जलवायु मॉडल तैयार किया जिसमें हिमनदों के पिघलने और सिमटने से खुलने वाले परितंत्र पर प्रकाश डाला गया है। नेचर पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार सबसे आशाजनक स्थिति में भी इस सदी के अंत तक 1,40,500 वर्ग कि.मी. (झारखंड के बराबर) क्षेत्र उजागर हो सकता है। यदि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन ज़्यादा रहा तो यह क्षेत्र इसका दुगना हो सकता है। सबसे अधिक प्रभाव अलास्का और एशिया के ऊंचे पहाड़ों पर पड़ने की संभावना है।

इस अध्ययन के प्रमुख और हिमनद वैज्ञानिक ज़्यां-बैप्टिस्ट बोसां ने इसे पृथ्वी के सबसे बड़े पारिस्थितिक परिवर्तनों में से एक निरूपित किया है। उनका अनुमान है कि नव उजागर क्षेत्र में से करीब 78 प्रतिशत भूमि और 14 प्रतिशत व 8 प्रतिशत हिस्सा क्रमश: समुद्री और मीठे पानी वाले क्षेत्र होंगे। 

एक दिलचस्प बात यह है कि इस क्षेत्र में निर्मित नए प्राकृतवास महत्वपूर्ण होंगे जिनका संरक्षण करने की ज़रूरत होगी। पेड़-पौधे बढें़गे तो कार्बन भंडारण अधिक होगा, जो निर्वनीकरण की प्रतिपूर्ति कर सकता है और ऐसे जंतुओं को नए प्राकृतवास मिलेंगे जो कम ऊंचाई पर रहते हैं और बढ़ते तापमान से जूझ रहे हैं। यह अध्ययन उन वैज्ञानिकों के लिए मार्गदर्शन भी प्रदान करेगा जो अनछुए स्थानों पर सूक्ष्मजीवों, पौधों और जंतुओं के प्रवास को समझने का प्रयास कर रहे हैं। गौरतलब बात है कि इस अध्ययन में शामिल किए गए आधे से भी कम हिमनद क्षेत्र वर्तमान के संरक्षित क्षेत्रों में शामिल हैं। लिहाज़ा इस अध्ययन से इस भावी परिघटना के मद्देनज़र भूमि प्रबंधन को लेकर सरकारें भी नई चुनौतियों से निपट पाएंगी।

वैसे बोसां का कहना है कि  ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के प्रयास तत्काल किए जाएं तो वर्तमान हिमनदों का काफी हिस्सा बचाया जा सकता है। चूंकि वर्तमान में हम बढ़ते तापमान की समस्या से जूझ रहे हैं, इन उभरते परितंत्रों का संरक्षण और प्रबंधन न केवल जैव विविधता संरक्षण के लिए अनिवार्य है बल्कि जलवायु परिवर्तन के दूरगामी प्रभावों को कम करने का एक अवसर भी है। (स्रोत फीचर्स)

 
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पाकिस्तान में अगस्त में तेजी से बढ़े आतंकवादी हमले !

 पाकिस्तान इंस्टीट्यूट फॉर कॉन्फ्लिक्ट एंड सिक्योरिटी स्टडीज (पीआईसीएसएस) ने कहा है कि अगस्त में पाकिस्तान में आतंकवादी हमलों में तेजी से वृद्धि देखी गई, देश भर में 99 घटनाएं दर्ज की गईं, जो नवंबर 2014 के बाद से सबसे अधिक मासिक संख्या है।

रिपोर्ट के अनुसार, पीआईसीएसएस ने शुक्रवार को एक रिपोर्ट में कहा कि हमलों में 112 मौतें हुईं और 87 घायल हुए, जिनमें से ज्यादातर सुरक्षा बल के जवान और नागरिक थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि जुलाई की तुलना में आतंकवादी हमलों में 83 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, क्योंकि जुलाई में 54 हमले हुए थे।

इसके अलावा, दक्षिण एशियाई देश में 2023 के पहले आठ महीनों में 22 आत्मघाती हमले हुए हैं, जिसमें 227 लोग मारे गए हैं और 497 घायल हुए हैं। पीआईसीएसएस के अनुसार, आंकड़ों से यह भी पता चला है कि सुरक्षा बलों ने आतंकवादी खतरे का प्रभावी ढंग से जवाब दिया, कई हमलों को टाल दिया गया, देश भर में विभिन्न अभियानों में कम से कम 24 आतंकवादियों को मार गिराया और 69 अन्य को गिरफ्तार किया।

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तमाकी फिर चुने गए जापान के विपक्षी दल के नेता

 जापान की विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी फॉर द पीपल (डीपीपी) ने अपने मौजूदा प्रमुख युइचिरो तमाकी को फिर से नेता चुना है। रिपोर्ट के अनुसार, शनिवार को पार्टी के कार्यवाहक प्रमुख सेइजी मेहारा पर निर्णायक जीत हासिल करते हुए तमाकी को तीन साल के नए कार्यकाल के लिए पार्टी के नेता के रूप में फिर से चुना गया।

तमाकी ने अपने भाषण में, आगामी आम चुनावों की तैयारी के लिए मुद्दों के संदर्भ में सुधार के लिए विभिन्न संबंधित दलों की राय सुनने की प्रतिबद्धता व्यक्त की।स्थानीय मीडिया आउटलेट्स के अनुसार, पांच बार के प्रतिनिधि सभा सदस्य ने संभावित फेरबदल की ओर इशारा करते हुए कहा कि उनकी कैबिनेट सदस्य बनने की कोई योजना नहीं है।

सितंबर 2020 में, कॉन्स्टिट्यूशनल डेमोक्रेटिक पार्टी (सीडीपी) और तत्कालीन डीपीपी के विलय के बाद जापान की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी उभरी। पार्टी ने सीडीपी का नाम बरकरार रखा।

हालांकि, तमाकी सहित जापानी संसद के 10 से अधिक सदस्यों ने सीडीपी में शामिल नहीं होने का फैसला किया और इसके बजाय नई डीपीपी की स्थापना की। उसी साल दिसंबर में तमाकी को इस नवगठित पार्टी का नेता चुना गया।

 

 

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बाइडेन-मोदी 8 को करेंगे द्विपक्षीय बैठक

 अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन 7 सितंबर को भारत के दौरे पर आ रहे हैं। वो 9-10 सितंबर को दिल्ली में होने वाली G-20 समिट में शामिल होंगे। इससे ठीक एक दिन पहले 8 सितंबर को बाइडेन PM मोदी के साथ द्विपक्षीय बातचीत करेंगे। शनिवार को व्हाइट हाउस ने ये जानकारी दी।

व्हाइट हाउस ने बताया- दोनों नेताओं के बीच रूस-यूक्रेन जंग पर बातचीत होगी। इस दौरान इकोनॉमिक और सोशल लेवल पर जंग के असर को कम करने पर चर्चा होगी। इसके अलावा दोनों नेता गरीबी से लड़ने के लिए वर्ल्ड बैंक सहित दूसरे मल्टीलेटरल डेवलपमेंट बैंक की क्षमता बढ़ाने और दूसरे कई ग्लोबल चैलेंज पर भी बात करेंगे।

जी-20 में पीएम मोदी के नेतृत्व की सराहना करेगा अमेरिका
दिल्ली यात्रा के दौरान बाइडेन G-20 के लिए PM मोदी के नेतृत्व की भी सराहना करेंगे। साथ ही वो आर्थिक सहयोग के प्रमुख मंच के तौर पर G-20 के लिए अमेरिका की प्रतिबद्धता की भी पुष्टि करेंगे। 2026 में अमेरिका ही G-20 समिट की मेजबानी करने वाला है।

बाइडेन भारत में हो रहे G-20 समिट में शामिल होने की पुष्टि करने वाले शुरुआती नेताओं में से एक हैं। भारत दौरे के वक्त वो दिल्ली के ITC मौर्या होटल में रुकेंगे। बाइडेन की सुरक्षा के लिए अमेरिका की सीक्रेट सर्विस की टीम 3 दिन पहले ही भारत पहुंच जाएगी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बाइडेन सीक्रेट सर्विस के 300 कमांडो के सुरक्षा घेरे में रहेंगे।

बाइडेन के लिए भारत आ सकती है सबसे सुरक्षित 'द बीस्ट' कार
दिल्ली की सड़कों पर निकलने वाला सबसे बड़ा काफिला भी उनका ही होगा, जिसमें 55-60 गाड़ियां शामिल होंगी। वहीं मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बाइडेन के लिए दुनिया की सबसे सेफ कार ‘द बीस्ट’ को भी भारत लाया जा सकता है। इसी कार में बैठकर वो G-20 समिट के लिए जाएंगे।

बाइडेन के अलावा इस समिट में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों, ऑस्ट्रेलिया के PM एंथनी अल्बनीज, जापान के PM किशिदा, सहित कई बेड़ा नेता मौजूद रहेंगे। रूस के राष्ट्रपति पुतिन पहले ही समिट न शामिल होने की बात कह चुके हैं। उन्होंने PM मोदी को फोन करके इसकी जानकारी दी थी। उनकी जगह रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव शिखर सम्मेलन में मौजूद रहेंगे।

समिट में जिनपिंग के शामिल होने पर सस्पेंस
दूसरी तरफ समिट में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के शामिल होने पर भी संदेह बना हुआ है। रॉयटर्स ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि जिनपिंग इस सम्मेलन में नहीं जाएंगे। उनकी जगह चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग मौजूद रहेंगे। हालांकि, अभी चीन या भारत की तरफ से इसकी पुष्टि नहीं की गई है। बता दें कि ये पहला मौका है जब भारत इस समिट की मेजबानी कर रहा है।

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नासा के मंगल हेलीकॉप्टर ने मंगल ग्रह पर 56 उड़ानें पूरी की

लॉस एंजिल्स: नासा के मंगल हेलीकॉप्टर ने लाल ग्रह पर अपनी 56 उड़ानें पूरी कर ली। यह जानकारी एजेंसी ने गुरुवार को दी। नासा के अनुसार, मंगल हेलीकॉप्टर ने 25 अगस्त को अपनी 56वीं उड़ान शुरु की थी, जिसमें वह 12 मीटर की ऊंचाई तक पहुंचा और 141 सेकंड में 410 मीटर की यात्रा की।

इंजेनुइटी नामक यह हेलीकॉप्टर 18 फरवरी, 2021 को मंगल ग्रह के जेजेरो क्रेटर पर पहुंचा था, जो नासा के पर्सिवरेंस रोवर से जुड़ा हुआ था। यह हेलीकॉप्टर एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शन है, जिसे किसी अन्य ग्रह पर संचालित उड़ान का परीक्षण करने के लिए पहली बार डिजाइन किया गया है।

नासा के अनुसार, हेलीकॉप्टर को 90 सेकंड तक उड़ान भरने, एक समय में लगभग 300 मीटर की दूरी तक करने और जमीन से लगभग तीन से 4.5 मीटर की दूरी तक उडने के लिए डिज़ाइन किया गया था। नासा के अनुसार, अब तक, इस हेलीकॉप्टर ने मंगल ग्रह पर 100.2 उड़ान मिनट पूरा किया है, 12.9 किलोमीटर की दूरी तय की है और 18 मीटर की ऊंचाई तक पहुंचा है।

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इंडोनेशिया में भूकंप के तेज झटके

 इंडोनेशिया के बाली सागर क्षेत्र में मंगलवार देर रात को भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए। रिक्टर पैमाने पर भूकंप की तीव्रता 7.0 आंकी गई है।

समाचार एजेंसी रायटर्स ने यूरोपीय भूमध्यसागरीय भूकंप विज्ञान केंद्र के हवाले से यह जानकारी दी। इस तेज भूकंप के कारण अभी तक कितनी जनहानि हुई है, इस बारे में अभी तक कोई भी जानकारी सामने नहीं आई है।

सुनामी आने की आशंका नहीं
यूरोपीय भूमध्यसागरीय भूकंप विज्ञान केंद्र ने कहा कि भूकंप का केंद्र इंडोनेशिया के मातरम से 203 किमी उत्तर की ओर था। यह केंद्र धरती की सतह से 516 किमी की गहराई पर था। इंडोनेशिया में आए इस भूकंप की तीव्रता अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने आंकी है। अमेरिकी सुनामी चेतावनी प्रणाली ने जानकारी दी है कि समुद्र की गहराई में आए भूकंप के कारण सुनामी का कोई खतरा नहीं है।

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सेहत : डेंगू व मलेरिया की तरह ही मच्छरों से फैलती है ये बीमारी

 जीका वायरस का पहला मामला मुंबई के चेंबूर में सामने आया है जहां, 79 वर्षीय व्यक्ति बुखार, खांसी और बंद नाक से पीड़ित था। इसके बाद से आम लोगों को जीका वायरस के प्रति सतर्क रहने के लिए कहा गया है। लेकिन, किसी भी बीमारी से बचने के लिए इनके कारणों और लक्षणों के बारे में जानना बेहद जरूरी है।  जैसे कि जीका वायरस (Zika Virus) मच्छर जनित बीमारी है जो कि एडीज एजिप्टी मच्छरों के जरिए फैलती है। इसके बाद इसमें शरीर में कई लक्षण नजर आते हैं। क्यों और कैसे, जानते हैं इस बारे में विस्तार से।


दिन में काटता है जीका वायरस का मच्छर
WHO की मानें तो, ये मच्छर दिन में काटता है और ये गर्भवती मां से उसके बच्चे तक फैल सकता है। जीका वायरस संक्रमण वयस्कों और बच्चों में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम, न्यूरोपैथी और मायलाइटिस से जुड़ा हुआ है। होता ये है कि ये मच्छर अगर किसी संक्रमित व्यक्ति को काट ले और फिर ये किसी दूसरे संक्रमित व्यक्ति को काट ले तो, ये इंफेक्शन का चेन चलता जाता है और ये संक्रामक बीमारी फैल सकती है।

जीका वायरस के लक्षण
WHO की मानें तो जीका वायरस के अधिकांश मामलों में लक्षण विकसित नहीं होते हैं।  इसके अलावा जिल लोगों में लक्षण नजर आते हैं उनमें आमतौर पर
शरीर में दाने या कहें कि रैशेज
बुखार
मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द
सिरदर्द जैसे लक्षण नजर आ सकते हैं हैं जो 2-7 दिनों तक रह सकते हैं।
इसके अलावा कुछ रिपोर्ट्स बताते हैं कि मच्छर के काटने के 3–14 दिन बाद लक्षण महसूस होते हैं।  इसमें आपको ऊपर बताए गए लक्षणों के अलावा ये चीजें भी महसूस हो सकती हैं। जैसे कि कंजक्टिवाइटिस, जोड़ों में दर्द, मसल्स पेन और लंबे समय तक रहने वाला सिर दर्द।

किन बातों का रखें ध्यान
WHO की फैक्टशीट के हिसाब से अभी तक जीका वायरस का टीका नहीं आया है। ऐसे में आप सिर्फ दो चीजों का ध्यान रख सकते हैं। पहली चीज इंफेक्शन के लक्षण आते ही डॉक्टर से बात करें और अपनी जांच करवाएं। दूसरा, आप अच्छरों से बचें और इसके लिए वही सब करें जो कि आप बाकी मच्छर जनित बीमारियों से बचने के लिए करते हैं। जैसे मलेरिया और डेंगू। तो, अपने आस-पास साफ पानी जमा न होने दें, घर में साफ-सफाई रखें। खिड़की दरवाजों को बंद रखें, अपने हाथ-पैर पर एंटी मलेरियल क्रीम लगाएं और फिर रात को मच्छरदानी लगाकर सोएं।

 

 

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रहस्यमय भारतीय चील-उल्लू

 भारतीय चील-उल्लू  को कुछ वर्षों पूर्व ही एक अलग प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया था और इसे युरेशियन चील-उल्लू से अलग पहचान मिली थी। भारतीय प्रजाति सचमुच एक शानदार पक्षी है। मादा नर से थोड़ी बड़ी होती है और ढाई फीट तक लंबी हो सकती है, और उसके डैनों का फैलाव छह फीट तक हो सकता है।

इनके विशिष्ट कान सिर पर सींग की तरह उभरे हुए दिखाई देते हैं। इस बनावट के पीछे एक तर्क यह दिया जाता है कि ये इन्हें डरावना रूप देने के लिए विकसित हुए हैं ताकि शिकारी दूर रहें। यदि यह सही है, तो ये सींग वास्तव में अपना काम करते हैं और डरावना आभास देते हैं।

निशाचर होने के कारण इस पक्षी के बारे में बहुत कम मालूमात हैं। इनके विस्तृत फैलाव (संपूर्ण भारतीय प्रायद्वीप) से लगता है कि इनकी आबादी काफी स्थिर है। लेकिन पक्के तौर पर कहा नहीं जा सकता क्योंकि ये बहुत आम पक्षी नहीं हैं। इनकी कुल संख्या की कभी गणना नहीं की गई है। हमारे देश में वन क्षेत्र में कमी होते जाने से आज कई पक्षी प्रजातियों की संख्या कम हो रही है। लेकिन भारतीय चील-उल्लू वनों पर निर्भर नहीं है। उनका सामान्य भोजन, जैसे चूहे, बैंडिकूट और यहां तक कि चमगादड़ और कबूतर तो झाड़-झंखाड़ और खेतों में आसानी से मिल जाते हैं। आसपास की चट्टानी जगहें इनके घोंसले बनाने के लिए आदर्श स्थान हैं।

मिथक, अंधविश्वास

मानव बस्तियों के पास ये आम के पेड़ पर रहना पसंद करते हैं। ग्रामीण भारत में, इस पक्षी और इसकी तेज़ आवाज़ को लेकर कई अंधविश्वास हैं। इनका आना या इनकी आवाज़ अपशकुन मानी जाती है। प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सलीम अली ने लोककथाओं का दस्तावेज़ीकरण किया है जो यह कहती हैं कि चील-उल्लू को पकड़कर उसे पिंजरे में कैद कर भूखा रखा जाए तो यह मनुष्य की आवाज़ में बोलता है और लोगों का भविष्य बताता है।

उल्लू द्वारा भविष्यवाणी करने सम्बंधी ऐसे ही मिथक यूनानी से लेकर एज़्टेक तक कई संस्कृतियों में व्याप्त हैं। कहीं माना जाता है कि वे भविष्यवाणी कर सकते हैं कि युद्ध में कौन जीतेगा, तो कहीं माना जाता है कि आने वाले खतरों की चेतावनी दे सकते हैं। लेकिन हम उन्हें ज्ञान से भी जोड़ते हैं। देवी लक्ष्मी का वाहन उल्लू (उलूक) ज्ञान और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

भारतीय चील-उल्लू से जुड़े नकारात्मक अंधविश्वास हमें इनके घोंसले वाली जगहों पर इनकी उग्र सुरक्षात्मक रणनीति पर विचार करने को मजबूर करते हैं। इनके घोंसले चट्टान पर खरोंचकर बनाए गोल कटोरेनुमा संरचना से अधिक कुछ नहीं होते, जिसमें ये चार तक अंडे देते हैं। इनके खुले घोंसले किसी नेवले या इंसान की आसान पहुंच में होते हैं। यदि कोई इनके घोंसले की ओर कूच करता है तो ये उल्लू खूब शोर मचाकर उपद्रवी व्यवहार करते हैं, और घुसपैठिये के सिर पर पीछे की ओर से अपने पंजे से झपट्टा मारकर वार करते हैं।

खेती में लाभकारी

इन उल्लुओं की मौजूदगी से किसानों को निश्चित ही लाभ होता है। एला फाउंडेशन और भारतीय प्राणि वैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा किए गए शोध से पता चलता है कि झाड़-झंखाड़ के पास घोंसले बनाने वाले भारतीय चील-उल्लुओं की तुलना में खेतों के पास घोंसले बनाने वाले भारतीय चील-उल्लू संख्या में अधिक और स्वस्थ होते हैं। ज़ाहिर है, उन्हें चूहे वगैरह कृंतक जीव बड़ी संख्या में मिलते होंगे। और उल्लुओं के होने से किसानों को भी राहत मिलती होगी।

इन उल्लुओं का भविष्य क्या है? भारत में पक्षियों के प्रति रुचि बढ़ती दिख रही है। पक्षी निरीक्षण (बर्ड वॉचिंग),  जिसे एक शौक कहा जाता है, अधिकाधिक उत्साही लोगों को लुभा रहा है। ये लोग पक्षियों की गणना, सर्वेक्षण और प्रवासन क्षेत्रों का डैटा जुटाने में योगदान दे रहे हैं। लेकिन यह काम अधिकतर दिन के उजाले में किया जाता है जिसमें उल्लुओं के दर्शन प्राय: कम होते हैं। उम्मीद है कि भारतीय चील-उल्लू जैसे निशाचर पक्षियों के भी दिन (रात) फिरेंगे। (स्रोत फीचर्स) 

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