छत्तीसगढ़

अभनपुर के स्कूल में मिला किताबों का ढेर, विकास ने लगाया भ्रष्टाचार का आरोप

 छत्तीसगढ़ में स्कूली बच्चों को दी जाने वाली पाठ्यपुस्तकों के वितरण में लापरवाही और अनियमितताओं के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। हाल ही में राजधानी रायपुर में करोड़ों रुपये की किताबें कबाड़ में बिकने के बाद, अब अभनपुर के एक सरकारी स्कूल में हजारों किताबें बेकार पड़ी हुई मिली हैं। गुरुवार को पूर्व विधायक विकास उपाध्याय ने स्वामी आत्मानंद स्कूल, अभनपुर में छापा मारकर दो कमरों में भरी हजारों किताबें बरामद कीं। उन्होंने इस पूरी घटना का वीडियो भी जारी किया है, जिसमें कमरों में भरी किताबों के ढेर देखे जा सकते हैं। जिसके बाद उन्होंने किताबों की छपाई और रद्दी में डंप करने पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है।


सिलयारी में पहले भी हुआ था खुलासा
यह पहला मामला नहीं है जब ऐसी लापरवाही सामने आई हो। इससे पहले पूर्व विधायक उपाध्याय ने सिलयारी की एक रियल पेपर मिल फैक्ट्री में छापा मारा था, जहां सरकारी किताबों को गलाकर पुनः कागज बनाया जा रहा था। यह किताबें इसी सत्र की थीं और बिल्कुल नई स्थिति में थीं। इसके बावजूद इन्हें कबाड़ बताकर फैक्ट्री में बेच दिया गया था। फैक्ट्री में किताबों का पहाड़नुमा ढेर लगा हुआ था, जो इन अनियमितताओं की गंभीरता को दर्शाता है।

फैक्ट्री के कर्मचारी हुए फरार
सिलयारी की घटना में फैक्ट्री कर्मचारियों से जब इन किताबों के स्रोत के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने दावा किया कि ये किताबें उन्हें कबाड़ से मिली हैं। हालांकि, विवाद बढ़ने पर फैक्ट्री के अधिकारी और कर्मचारी मौके से फरार हो गए। सरकारी विभागों से निकलने वाले रद्दी या कबाड़ की नीलामी के लिए एक प्रक्रिया होती है, जिसमें टेंडर जारी किया जाता है। इस मामले में भी पाठ्य पुस्तक निगम (पापुनि) से सवाल उठाए गए, लेकिन निगम के महाप्रबंधक प्रेम प्रकाश पांडेय ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

कांग्रेस सरकार से नहीं जुड़ा मामला: शैलेष नितीन त्रिवेदी


पूर्व पापुनि अध्यक्ष शैलेष नितीन त्रिवेदी ने स्पष्ट किया कि ये घटनाएं उनके कार्यकाल से नहीं जुड़ी हैं। उन्होंने बताया कि 2024-25 सत्र की किताबों की छपाई शुरू होने से पहले ही उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था, और इसके बाद सभी प्रक्रियाएं नई सरकार के अंतर्गत हुई हैं।

किताबों की छपाई का फॉर्मूला
लोक शिक्षण संचालनालय हर वर्ष छात्रों की संख्या के आधार पर किताबों की छपाई के लिए आंकड़े पाठ्य पुस्तक निगम को भेजता है। क्योंकि छात्र प्रवेश जुलाई में होते हैं और किताबें पहले से तैयार की जाती हैं, इसलिए बीते सत्र के छात्रों की संख्या में 10 प्रतिशत की वृद्धि करके किताबों की छपाई की जाती है। यदि किताबें बच भी जाती हैं, तो उनकी संख्या 10-15 हजार से अधिक नहीं होती।

बढ़ती अनियमितताएं
छत्तीसगढ़ में लगातार सामने आ रहे इन मामलों ने सरकारी किताबों के वितरण और निपटान प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस तरह की लापरवाही से सरकार के करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा है और छात्रों को समय पर किताबें नहीं मिल पा रही हैं। अब देखना होगा कि इस मामले में सरकार और प्रशासन क्या कदम उठाते हैं।

 

 

 

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