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इटावा में भरत-श्रीकृष्ण के जिक्र से इशारों में दर्द बयां कर गए शिवपाल

इटावा  (छत्तीसगढ़ दर्पण)। मंच विशुद्ध धार्मिक समारोह का था। लिहाजा प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) के मुखिया शिवपाल यादव अपने संबोधन में सीधे-सीधे राजनीतिक बातों से दूर रहे मगर, रामायण से लेकर महाभारत काल तक प्रसंगों के जरिये सबकुछ कह भी डाला। जिस तरह राम और भरत, कौरव-पांडव और कृष्ण के चुनिंदा प्रसंग उठाए, उसका राजनीतिक निहतार्थ और भतीजे पूर्व मुख्यमंत्री सपा प्रमुख अखिलेश यादव और भाई रामगोपाल यादव का नाम लिए बिना इन पर निशाना साफ था। शिवपाल इशारों में विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक की अपनी अनदेखी का दर्द बयान कर गए। वह पहले भी धार्मिक प्रसंगों के जरिये अपनी पीड़ा रख चुके हैं।

मंगलवार को सैफई तहसील क्षेत्र के ग्राम चौबेपुर में आयोजित धार्मिक समारोह में शिवाल ने कहा कि संकट से कोई बच नहीं सका है। संकट तो भगवान राम पर भी आया। राजतिलक होने जा रहा था, लेकिन कैकई के कारण उनको 14 साल वनवास का दिया गया। भरत ने राम की चरण पादुका रखकर 14 साल राजपाठ चलाया था, लेकिन किसी को भी सवाल उठाने होने का मौका नहीं दिया। माना जा रहा है, भरत के चरित्र से शिवपाल ने खुद को जोड़ा। वह यहीं नहीं रुके। महाभारत का जिक्र करते हुए बोले, कौरवों और पांडवों के बीच में महाभारत का युद्ध नहीं होता।
 
लेकिन, एक गलती के कारण युद्ध के हालात बन गए। पांडवों को जुआ नहीं खेलना चाहिए था। जुआ खेलना ही था तो दुर्योधन से खेलना चाहिए था, शकुनी से नहीं। पांडव तो केवल पांच गांव मांग रहे थे, जो उन्हें मिल गए होते तो युद्ध नहीं होता। जब युद्ध हुआ तो श्रीकृष्ण पांडवों के सारथी बने। युद्ध पांडवों ने जीत लिया। चर्चा रही कि इस प्रसंग के जरिये शिवपाल ने चुनाव के दौरान गठबंधन से लेकर सीटों की मांग की अनसुनी की पीड़ा व्यक्त की। करीब डेढ़ घंटे से अधिक समय तक धार्मिक समारोह में रहे प्रसपा प्रमुख चौबेपुर गांव के लोगो से दिल खोलकर मिले और उनकी बातों को सुना।

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