दुनिया-जगत

दुनिया की बड़ी चुनौतियों का समाधान भारत के सहयोग के बिना संभव नहीं : एस. जयशंकर

 

ब्रातीस्लावा/नई दिल्ली(छत्तीसगढ़ दर्पण)। यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद पश्चिमी देशों की तरफ से बार-बार यह सवाल उठाया जा रहा है कि नए वैश्विक हालात में भारत अमेरिका की तरफ होगा या चीन-रूस की तरफ। शुक्रवार को विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्वयं इस सवाल का साफ-साफ जवाब दिया और वह भी वैश्विक मंच से। जयशंकर ने स्पष्ट किया कि भारत किसी भी धुरी में शामिल नहीं होगा क्योंकि भारत स्वयं एक ताकतवर देश और बड़ी आर्थिक शक्ति है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि दुनिया के समक्ष मौजूदा बड़ी चुनौतियों का समाधान बिना भारत के सहयोग के नहीं हो सकता।

विदेश मंत्री ने पूरी दुनिया को सिर्फ अपने नजरिए से देखने के यूरोपीय देशों के रवैये को भी आड़े हाथों लिया और कहा कि भारत अपने हितों के मुताबिक ही आगे बढ़ेगा। जयशंकर अभी चेक गणराज्य और स्लोवाकिया की यात्रा पर हैं। स्लोवाकिया यात्रा के दौरान बेहद प्रतिष्ठित ब्रास्तीस्लावा फोरम में हिस्सा लेते हुए विदेश मंत्री बदलते वैश्विक हालात पर पूछे गए सवालों के जवाब दे रहे थे। उनसे पूछा गया कि जब दुनिया में दो धुरी बनने के संकेत हैं जिसमें एक अमेरिका व पश्चिमी देशों की होगी और दूसरी चीन व रूस की होगी तो भारत किस तरफ होगा। जयशंकर का जवाब था, मैं इस बात से असहमत हूं कि भारत को किसी धुरी में शामिल होने की जरूरत है। मैं इस बात को भी खारिज करता हूं कि अगर मैं एक समूह के साथ नहीं हूं तो दूसरे समूह के विरोध में हूं।

जयशंकर ने इस बयान को भी खारिज किया कि भारत तटस्थ है। उन्होंने कहा कि भारत अपनी जमीन पर है। आज दुनिया में जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद जैसी कई चुनौतियां हैं और इनका समाधान या तो भारत से निकलेगा या भारत इससे निपटने में अहम योगदान देगा। इस दौरान जयशंकर ने यूक्रेन-रूस के हालात को भारत और चीन से जोड़ने की कोशिशों को भी खारिज किया। चीन के साथ जारी तनाव के बारे में जयशंकर ने कहा कि भारत इस कठिन रिश्ते में अपने हितों की रक्षा करने में सक्षम है। अगर वैश्विक हालात से मैं सीख लेने की कोशिश करता हूं तो इससे मदद मिलेगी, लेकिन एक जगह विवाद में मैं मदद करता हूं तो मुझे दूसरे विवाद में मदद मिलेगी, दुनिया ऐसे नहीं चलती।

जयशंकर ने कहा कि चीन दूसरी जगह की घटनाओं से सीख लेकर यह तय नहीं करेगा कि उसे भारत के साथ किस तरह का व्यवहार करना है या नहीं करना है। भारत और चीन में तनाव यूक्रेन-रूस विवाद के पहले से जारी है। जयशंकर का यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि कई देश यूक्रेन-रूस के हालात को भारत-चीन तनाव से जोड़कर पेश कर रहे हैं। वे ऐसा बता रहे हैं कि अगर भारत अभी रूस का विरोध नहीं करता है तो भविष्य में चीन के साथ विवाद बढ़ने पर दूसरे देश भारत की मदद नहीं करेंगे।

अपनी समस्या को दुनिया की समस्या मानने की मानसिकता छोड़े यूरोप

जयशंकर ने यूरोपीय देशों को सीख भी दे डाली कि उन्हें इस मानसिकता से बाहर निकलना होगा कि उनकी समस्या दुनिया की समस्या है, लेकिन दुनिया की समस्या उनकी समस्या नहीं है। यूरोप एशिया की कई समस्याओं पर चुप्पी साधे रहता है। आज एशिया में बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जिस पर यूरोपीय देश कुछ नहीं बोल रहे। ऐसे में एशिया के लोग यूरोप पर किसी तरह का भरोसा क्यों करेंगे। वैसे भी दुनिया में बहुत कुछ बदल रहा है। दुनिया हमेशा यूरोप केंद्रित नहीं रह सकती।

यूरोपीय देश रूस से तेल खरीद सकते हैं तो दूसरे क्यों नहीं

विदेश मंत्री ने रूस से तेल खरीदने के भारत के फैसले पर सवाल उठाने वाले यूरोपीय देशों को भी कठघरे में खड़ा किया और सवाल किया कि क्यों यूरोपीय देश रूस से तेल और गैस खरीद सकते हैं, लेकिन दूसरे देश नहीं खरीद सकते। यह कैसे कहा जा सकता है कि भारत से जो पैसा रूस को जा रहा है उसी का इस्तेमाल युद्ध के लिए हो रहा है, यूरोपीय देशों के पैसे का नहीं।

Leave Your Comment

Click to reload image