दुनिया-जगत

मानवाधिकार हनन का मुद्दा पाकिस्तान के लिए बना नया फंदा

 इस्लामाबाद (छत्तीसगढ़ दर्पण) जिस दिन उस्मान कक्कर की मौत और कथित ‘हत्या सूची’ के बारे में संयुक्त राष्ट्र के पत्र की बात यहां सार्वजनिक हुई, उसी रोज बलूचिस्तान के मानवाधिकार कार्यकर्ता आबिद मीर के गायब हो जाने की खबर ने सनसनी पैदा कर दी। हालांकि गुरुवार देर रात आबिद मीर अपने घर लौट आए, लेकिन उनके गायब होने की घटना को लेकर रहस्य बना हुआ है।

इस बीच यह अजीब खबर भी सामने आई है कि लोगों के लापता होने के मामलों में कार्रवाई के लिए नेशनल असेंबली से पिछले नवंबर में पारित बिल खुद ‘लापता’ हो गया है। निचले सदन से इस बिल के पारित होने के बाद इसे ऊपरी सदन सीनेट को भेजा गया था। पूर्व मानव अधिकार मंत्री शिरीन मजारी ने बताया है कि जब उन्होंने इस बिल के बारे में जानकारी पाने की कोशिश की तो बताया गया कि बिल सीनेट में ‘लापता’ हो गया है।

 

पाकिस्तान में लोगों के गायब होने की समस्या कई वर्षों से जारी है। इसी सिलसिले में संयुक्त राष्ट्र के चार मानव अधिकार रैपोटियरों ने एक साझा पत्र पाकिस्तान सरकार को भेजा है। हालांकि यह पत्र पिछले 27 दिसंबर को ही भेजा गया था, लेकिन उसके बारे में सूचना इस हफ्ते सार्वजनिक की गई।  

 

इस पत्र में संयुक्त राष्ट्र प्रतिनिधियों ने कहा था कि अगर उनके पत्र पर 60 के अंदर कार्रवाई नहीं की गई, तो वे पत्र को सार्वजनिक कर देंगे और फिर कक्कर की हत्या और ऐसी हत्याओं की एक कथित सूची मौजूद होने का मामला संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार परिषद को भेज दिया जाएगा। उस्मान कक्कर अल्पसंख्यक पख्तून समुदाय से आते थे। वे फख्तूनख्वा मिल्ली अवामी पार्टी के नेता थे। 17 जून 2021 को अपने घर पर मृत पाए गए थे। तब से यह संदेह जताया जाता रहा है कि उनकी हत्या की गई। उन्हें कई बार हत्या की धमकियां मिल चुकी थीं। खुफिया एजेंसियां भी उनकी हत्या की आशंका जता चुकी थीं।

 

संयुक्त राष्ट्र के मानव अधिकार प्रतिनिधियों की इस चिट्ठी को पाकिस्तान सरकार के लिए जोरदार झटके के रूप में देखा गया है। इससे मानव अधिकार संरक्षण के मुद्दे पर पाकिस्तान की पहले से खराब अंतरराष्ट्रीय छवि पर और धब्बा लगा है। इसी बीच बलूचिस्तान के मानव अधिकार कार्यकर्ता आबिद मीर के इस्लामाबाद से लापता हो जाने की खबर आई।

 

 

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