शिक्षा

उपराष्ट्रपति ने विद्यालयों में शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा का समर्थन किया

नई दिल्ली(छत्तीसगढ़ दर्पण)। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडु ने देश के विद्यालयों से छात्रों में जिज्ञासा, नवाचार और उत्कृष्टता की भावना को बढ़ावा देने का अनुरोध किया, जिससे वे तकनीक संचालित 21वीं सदी के विश्व की चुनौतियों के लिए तैयार हो सकें। श्री नायडु ने रटने वाली पढ़ाई को छोड़ते हुए शिक्षा के लिए भविष्यवादी दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, सबसे अच्छा कौशल, जो विद्यालय आज छात्रों को प्रदान कर सकते हैं, वह अनुकूलन क्षमता है। उपराष्ट्रपति ने विद्यालयों से छात्रों को आत्मचिंतन करने और अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग करके नवाचार करने को लेकर प्रशिक्षित करने के लिए कहा।


उपराष्ट्रपति ने चेन्नई के पास स्थित वीआईटी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस की एक पहल-वेल्लोर इंटरनेशनल स्कूल का उद्घाटन किया। अपने संबोधन में श्री नायडु ने एक बच्चे के शुरुआती वर्षों के दौरान स्कूली शिक्षा के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने इस पर अपनी चिंता व्यक्त की कि छात्र पारंपरिक शिक्षा प्रणाली के तहत कक्षा की चारदीवारी में अधिकांश समय बिता रहे हैं। उन्होंने छात्रों को बाहर के संसार का अनुभव करने – प्रकृति की गोद में समय बिताने, समाज के सभी वर्गों के साथ बातचीत करने और विभिन्न शिल्प व व्यापार को समझने के लिए प्रोत्साहित करने का आह्वान किया।

श्री नायडु कक्षा की पढ़ाई को क्षेत्रीय गतिविधियों, सामाजिक जागरूकता और सामुदायिक सेवा पहलों के साथ पूरक बनाए जाने की अपनी इच्छा व्यक्त की। उन्होंने आगे कहा कि कम उम्र से ही छात्रों में सेवा और देशभक्ति की भावना पैदा करने की सख्त जरूरत है।

उपराष्ट्रपति ने इस बात को याद किया कि भारत की प्राचीन गुरुकुल प्रणाली शिक्षक के बच्चों के बीच समय बिताने के साथ एक व्यक्ति के समग्र विकास पर केंद्रित थी। इसमें छात्रों के चरित्र निर्माण और सही मूल्यांकन पर जोर दिया गया था। उपराष्ट्रपति ने विद्यालयों से ‘गुरु शिष्य परंपरा’ के सकारात्मक पहलुओं को अपनाने पर जोर दिया। इसके अलावा श्री नायडु ने पाठ्यक्रम व पाठ्येतर गतिविधियों के बीच कृत्रिम अलगाव को दूर करने और शिक्षा में बहु-विषयकता को प्रोत्साहित करने का भी आह्वान किया।

उपराष्ट्रपति ने आगे कहा कि उनकी इच्छा है कि विद्यालय एक मूल्य-आधारित समग्र शिक्षा प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करें, जो “हर एक छात्र में महान क्षमता और उच्चतम गुणों” का विकास करे। उन्होंने उल्लेख किया कि “मूल्यों के बिना शिक्षा, शिक्षा न मिलने के समान है।”

उपराष्ट्रपति ने विद्यालयों में शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा के महत्व को रेखांकित किया। श्री नायडु ने कहा, “हमें छात्रों को अपने सामाजिक परिवेश में अपनी मातृभाषा में स्वतंत्र रूप से बोलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। जब हम स्वतंत्र रूप से और गर्व के साथ अपनी मातृभाषा में बात कर सकेंगे, उस समय ही हम अपनी सांस्कृतिक विरासत की सही मायने में सराहना कर सकते हैं।”

इसके अलावा उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि अपनी मातृभाषा के अलावा अन्य भाषाओं में किसी की दक्षता सांस्कृतिक जुड़ाव के निर्माण में सहायता करती है और अनुभव के नए संसार के लिए खिड़कियां खोलती हैं। हालांकि, श्री नायडु ने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी भाषा को थोपा नहीं जाना चाहिए और न ही इसका कोई विरोध होना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने आगे सुझाव दिया कि यथासंभव भाषाएं सीखनी चाहिए, लेकिन मातृभाषा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

श्री नायडु ने विद्यालयों से बच्चों के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करने के लिए छात्रों को नियमित शारीरिक गतिविधि के लिए प्रोत्साहित करने का भी अनुरोध किया। उन्होंने छात्रों को स्वस्थ जीवन शैली को अपनाने के लिए उत्साहपूर्वक खेल या किसी भी तरह के व्यायाम की सलाह दी।

इस कार्यक्रम में तमिलनाडू के एमएसएमई मंत्री टीएम अंबारासन, वीआईटी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन्स के संस्थापक व कुलपति डॉ. जी विश्वनाथन, वीआईटी के वीआईएस व उपाध्यक्ष जीवी सेल्वम, वीआईटी के उपाध्यक्ष शंकर विश्वनाथन, वीआईटी के उपाध्यक्ष सेकर विश्वनाथन और अन्य उपस्थित थे।

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