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आर्य समाज से जारी मैरिज सर्टिफिकेट को मानने से सुप्रीम कोर्ट ने किया किया इंकार, जानें मामला…

नई दिल्ली (छत्तीसगढ़ दर्पण)। आर्य समाज की ओर से जारी किया जाने वाला मैरिज सर्टिफिकेट अब कानूनी रूप से मान्य नहीं होगा। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम मामले की सुनवाई करते हुए यही टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने कहा है कि आर्य समाज की ओर से जारी होने वाले मैरिज सर्टिफिकेट को कानूनी मान्यता नहीं दी जा रही है।

बेंच ने कहा है कि आर्य समाज का काम मैरिज सर्टिफिकेट जारी करना नहीं है। यह काम तो सक्षम प्राधिकरण ही करते हैं और उन्हीं का अधिकार क्षेत्र है। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने यह टिप्पणी मध्य प्रदेश के एक कपल की लव मैरिज से जुड़े एक मामले में की है। आपको बता दें कि आर्य समाज एक हिंदू सुधारवादी संगठन है और इसकी स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1875 में की थी।

क्या है पूरा मामला?-

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने जिस मामले में यह टिप्पणी की है, उसमें एक लड़की के परिवार ने अपनी बच्ची के नाबालिक होने की बात कहकर लड़के पर अपहरण और दुष्कर्म का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराई थी। उस युवक ने लड़की से शादी की थी। लड़की के परिवार ने IPC की धाराओं के तहत और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोस्को) अधिनियम की धारा 5 (एल) / 6 के तहत मामला दर्ज कराया था। आरोपी युवक इस मामले के खिलाफ कोर्ट गया, जहां उसने अपनी याचिका में कहा था कि लड़की बालिग है और हमने अपनी मर्जी से शादी की है और यह शादी आर्य समाज मंदिर में हुई थी। उस युवक ने आर्य समाज की ओर से एक विवाह प्रमाण पत्र भी कोर्ट के समक्ष पेश किया था। हालांकि सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस सर्टिफिकेट को मानने से इनकार कर दिया है।

हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में आया यह मामला

आपको बता दें कि इस मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट अप्रैल में सुनवाई के लिए तैयार हो गया था। जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की बेंच ने आर्य प्रतिनिधि सभा को विशेष विवाह अधिनियम 1954 की धारा 5, 6, 7 और 8 के प्रावधानों को एक महीने के भीतर अपने दिशानिर्देशों में शामिल करने को कहा।

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