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अमेरिका में आ गई आर्थिक मंदी, भारत में निर्यात अभी भी कमजोर, अर्थव्यवस्था कैसे बचाएगी मोदी सरकार?

 नई दिल्ली (छत्तीसगढ़ दर्पण)। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने विश्व ने अपने जुलाई अपडेट में वर्ल्ड इकोनॉमिक ऑउटलुक में चालू वित्त वर्ष में भारत के विकास दर का अनुमान 80 बेसिक प्वाइंट घटाकर 7.4 प्रतिशत कर दिया है। आईएमएफ का अपटेडेट विकास दर का अनुमान काफी हद तक आधिकारिक अनुमानों के करीब और वास्तविक मालूम होता है। वहीं, आईएमएफ ने अगले साल के लिए भारत की अर्थव्यवस्था के 6.1 फीसदी की दर से बढ़ने का अनुमान जताया है। आईएमएफ के मुताबिक, भारत के विकास दर पर विदेशी घटनाओं और वैश्विक राजनीतिक परिस्थितियों का पड़ा है। हालांकि, इसके बाद भी आईएमएफ का अनुमान भारत सरकार के लिए काफी राहत देने वाली है।

वैश्विक विकास दर पर प्रभाव 
आईएमएफ के अनुमानों के मुताबिक, साल 2022 में वैश्विक विकास दर का अनुमान 3.2 प्रतिशत है और आईएमएफ रिपोर्ट ने आने वाली वैश्विक मंदी (नकारात्मक विकास की लगातार दो तिमाहियों के रूप में परिभाषित) के बारे में चिंताओं को चिह्नित किया है। यह अमेरिका और अन्य उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के लिए चिंता का विषय हो सकता है। हालांकि भारत में मंदी की संभावना फिलहाल कम नजर आ रही है। वहीं, पिछले हफ्ते ब्लूमबर्ग की लेटेस्ट रिपोर्ट में सर्वे के आधार पर कहा गया है कि, कई एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था पर मंदी का खतरा बढ़ रहा है और उच्च कीमतें केंद्रीय बैंकों को अपनी ब्याज दरों में बढ़ोतरी की गति को तेज करने के लिए मजबूर कर रही हैं और दर्जन भर देश भीषण आर्थिक संकट में फंस सकते हैं। लेकिन, ब्लूमबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि, भारत पर आर्थिक मंदी का खतरा शून्य प्रतिशत है, जबकि श्रीलंका और अमेरिका भी खतरे की लिस्ट में शामिल हैं।

अमेरिका पर आर्थिक मंदी का कितना खतरा? 
आईएमएफ की रिपोर्ट ने 2022 में अमेरिकी विकास दर के अनुमान में बड़ा संशोधन किया है और अमेरिका के विकास दर का अनुमान घटाकर सिर्फ 2.3 प्रतिशत कर दिया है, जो अप्रैल की रिपोर्ट के मुकाबले, 1.4 प्रतिशत कम है। साल 2023 में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सिर्फ 1 प्रतिशत की वृद्धि होने की संभावना है, जो अमेरिका के लिए नकारात्मका बात है। यह वृद्धि 2023 की दूसरी छमाही में काफी हद तक कमजोर होने की उम्मीद है। वहीं, 2023 की चौथी तिमाही में अर्थव्यवस्था के केवल 0.6 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है। अमेरिका में मंदी की आशंका को लेकर मिले-जुले संकेत मिल रहे हैं। जनवरी से मार्च की तिमाही में, अमेरिकी अर्थव्यवस्था ने संकुचन आने की संभावना जताई गई है। फेडरल रिजर्व बैंक ऑफ अटलांटा के GDPNow पूर्वानुमान मॉडल के लेटेस्ट आंकड़ों में जो अनुमान लगाया गया है, उसके मुताबिक, अप्रैल से जून तिमाही के लिए GDP -1.6 प्रतिशत रहने का अनुमान है। इन आंकड़ों के मुताबिक, अमेरिका में मंदी की शुरुआत हो चुकी है। फेडरल रिजर्व बैंक ऑफ अटलांटा का विश्लेषण वास्तविक जीडीपी विकास का एक चालू अनुमान प्रदान करता है, जो कि जीडीपी के आधिकारिक अनुमान के जारी होने तक लंबित है, जो एक अंतराल के साथ आता है।

उपभोक्ता बाजार में निराशा 
आर्थिक मंदी को टालने के लिए दुनियाभर के केन्द्रीय बैंक्स ने डिमांड घटाने के लिए अपने ब्याज दरों को बढ़ाना शुरू कर दिया और अमेरिका की केन्द्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने भी लगातार ब्याज दर बढ़ाए हैं, लेकिन इसका नतीजा ये हुआ, कि डिमांड में तेजी से कमी आनी शुरू हो गई और उपभोक्ता बाजार निराशावादी हो गये हैं। मिशिगन यूनिवर्सिटी का इंडेक्स ऑफ कंज्यूमर सेंटिमेंट, अब तक के सबसे निचले स्तर पर है। वहीं, एक साल बाद की औसत मुद्रास्फीति 5.2 प्रतिशत रहने की उम्मीद है, जो कि 2 प्रतिशत के मुद्रास्फीति लक्ष्य से काफी ज्यादा है। हालांकि, कॉरपोरेट बिक्री और रोजगार संख्या जैसे अन्य महत्वपूर्ण संकेतक हैं, जो अर्थव्यवस्था को मंदी की ओर नहीं दिखाते हैं। विभिन्न संकेतकों के आधार पर, ब्लूमबर्ग ने अर्थशास्त्रियों के विश्लेषण के आधार पर जो सर्वे रिपोर्ट तैयार किया है, उसमें अमेरिका में आर्थिक मंदी आने की संभावना 38 प्रतिशत है।

आईएमएफ की रिपोर्ट में वैश्विक महंगाई का हाल? 
आईएमएफ की रिपोर्ट में इस साल वैश्विक मुद्रास्फीति को 8.3 प्रतिशत के शिखर पर पहुंचाने का अनुमान लगाया गया है। हालांकि, अगले साल इसके 6 फीसदी से नीचे रहने का अनुमान है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति इस साल 6.6 फीसदी से घटकर अगले साल 3.3 फीसदी रहने का अनुमान है। अगले साल तेल की कीमतों में 12 फीसदी की गिरावट का अनुमान लगाया गया है। यदि वास्तविक मुद्रास्फीति ग्राफ इन अनुमानों के करीब हो जाता है, तो ब्याज दरों में बढ़ोतरी की गति में कमी देखी जा सकती है, हालांकि इसकी संभावना तत्काल नहीं है, लेकिन आने वाली कुछ तिमाहियों में ऐसा हो सकता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव? 
ब्लूमबर्ग ने अर्थशास्त्रियों के अनुमानों के आधार पर जो विश्लेषण किया है, उसमें भारत के लिए बहुत बड़ी राहत की बात है और भारत में आर्थिक मंदी आने की संभावना शून्य प्रतिशत जताई गई है। भारत में मुद्रास्फीति और संभावित विकास मंदी, मुख्य रूप से वैश्विक झटके के कारण हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर डालने वाली बाहरी बाधाओं में नरमी देखी जा सकती है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने महंगाई पर काबू पाने के लिए अपनी ताजा बैठक में ब्याज दरों में 75 बेसिक प्वाइंट्स की बढ़ोतरी की है। वहीं, यूरोपीय सेंट्रल बैंक के बेंचमार्क दर को 50 आधार अंकों तक बढ़ाने के फैसले से अमेरिकी डॉलर सूचकांक में कुछ नरमी आई है। तेज विदेशी बहिर्वाह के उलटने और कच्चे तेल और कमोडिटी की कीमतों में सुधार ने रुपये को 80 प्रति डॉलर के स्तर को छूने के बाद वापसी करने में मदद की है।

भारत में आर्थिक मंदी आने की संभावना कम 
हाई फ्रीक्वेंसी इंडिकेटर्स बताते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था में तेज मंदी की संभावना कम है। एक जुलाई को खत्म हुए हफ्ते में क्रेडिट ग्रोथ में 14.4 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि दर्ज की गई। और एक महत्वपूर्ण बात ये है, कि उद्योगों को दिए गये बैंक कर्ज में मई 2022 में 8.7 प्रतिशत तक की तेजी आई है। जबकि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को ऋण ने सरकार की आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना द्वारा संचालित मजबूत वृद्धि दिखाई है, हाल के दो महीनों में देखा गया है कि, बड़े उद्योगों को भी ऋण मिल रहा है। इसके साथ ही भारत की कैपिसिटी उपयोग में वृद्धि, इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास खर्च में आई तेजी और प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए भारत सरकार की 'प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेटिव स्कीम' में भी तेजी आई है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिहाज से शुभसंकेत हैं। वहीं, सर्विस सेक्टर से जो ज्यादातर संकेत मिल रहे हैं, उसमें भी पिछले दो महीनों में उल्लेखनीय सुधार दिखाया गया है। हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि, उपभोक्ता आर्थिक संभावनाओं के बारे में अधिक आशावादी हो गए हैं। उपभोक्ता भावनाओं का सूचकांक (आईसीएस) पिछले चार महीनों में सुस्त वृद्धि के बाद जुलाई में ठीक होने के लिए तैयार है। वहीं, तेल की कीमतों में गिरावट का अनुमान भारत में महंगाई कम होने की दिशा में एक अच्छी खबर है, जो भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि की गति को प्रभावित कर सकता है।

फिर भी विकास दर होगा प्रभावित 
हालांकि, भारतीय अर्थव्यवस्था ने लचीलापन दिखाया है, लेकिन, इसके बाद भी यह वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में संभावित मंदी से सुरक्षित नहीं रह सकती है। 2021-22 में रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज करने के बाद आने वाले महीनों में निर्यात में नरमी देखी जा सकती है। विशेष रूप से, अमेरिका में मंदी का असर भारत के आईटी सेवाओं के निर्यात पर पड़ेगा। हालांकि ऑफशोर क्लाइंट्स से ऑर्डर फ्लो अभी भी मजबूत है, स्टैगफ्लेशन की चिंताओं के कारण आईटी फर्मों के प्रॉफिटेबिलिटी मार्जिन में कमी देखी जा रही है। लिहाजा, नीतिगत फोकस मैक्रो-इकोनॉमिक स्थिरीकरण, निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता और मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण से लाभ को मजबूत करने पर फोकस होना चाहिए।
 

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