दुनिया-जगत

अरब देशों में भी फैली ईरान से निकली हिजाब के खिलाफ क्रांति, क्या मुस्लिम देश देंगे औरतों को हक?

 

तेहरान (छत्तीसगढ़ दर्पण)। ईरान में 22 साल की लड़की महसा अमीनी की मौत के बाद पूरे ईरान में 10 दिनों के बाद भी बवाल मचा हुआ है और अभी तक हजार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जबकि 70 से ज्यादा लोग ईरानी पुलिस की गोलीबारी में मारे गये हैं। 22 साल की लड़की महसा अमीनी को ईरान की धार्मिक पुलिस ने गिरफ्तार किया था और फिर पुलिस हिरासत में महसा अमीनी की संदिग्ध मौत हो गई थी, जिसके बाद से ही ईरान की औरतें सड़कों पर उतरने लगीं थीं और फिर देखते ही देखते महिलाओं का प्रदर्शन काफी ज्यादा उग्र हो गया। महसा अमीनी को हिजाब पहनने के बाद भी बाल दिखने की वजह से गिरफ्तार किया गया था और आरोप है, कि उसके सिर को बुरी तरह से पीटा गया था। लेकिन, महसा की मौत के बाद जो ईरान में तूफान उठा है, वो शांत होने का नाम नहीं ले रहा है और उसकी चिंगारी अब अरब देशों में फैलने लगी है।

अरब देशों में फैल रही है आग
ईरान में तो महिलाओं की क्रांति की आग फैली ही हुई है और महिलाएं अब बिना हिजाब के सड़कों पर आ रही हैं कानून का विरोध कर रही है। हजारों महिलाएं अभी तक अपनी हिजाब को जला चुकी हैं और ईरानी सरकार ने प्रदर्शन को कुचलने के लिए इंटरनेट को ब्लॉक कर दिया है। लेकिन, अरब दुनिया में भी अब ईरान की क्रांति की चिंगारी फैलने लगी है और इराक समेत कई देशों की महिलाओं ने हिजाब के खिलाफ अपनी आवाज देनी शुरू कर दी है। इराक समेत कई देशों की महिलाएं ईरानी महिलाओं के समर्थन में सोशल मीडिया पर लिख रही हैं और अपने अपने देसों की कठोर इस्लामिक शासन की तरफ ध्यान आकर्षित कर रही हैं। हजारों की संख्या में अरब देश की मुस्लिम महिलाओं ने धीरे धीरे अपनी आवाज उठानी शुरू कर दी है और उन्होंने हिजाब के खिलाफ लिखना शुरू कर दिया है। ईरान के अलावा भी करीब करीब सभी मुस्लिम देशों में हिबाज पहनना अनिवार्य है और कई देशों में तो शरिया कानून की सख्ततम व्याख्या की गई है, जिसने औरतों की जिंदगी को बेहाल कर रखा है।

इराक में महिलाएं उठा रहीं हैं आवाज
हालांकि, इराक में संवैधानिक तौर पर हिजाब पहनने के लिए किसी महिला को जबरन बाध्य करना असंवैधानिक है, लेकिन संविधान में हिजाब पर विरोधाभासी बातें लिखी हुई हैं, लिहाजा कट्टरपंथी उसका फायदा उठाकर महिलाओं को हिजाब पहनने के लिए बाध्य करती हैं। असल में इराकी संविधान में इस्लाम के कानून को संविधान का प्राथमिक स्रोत कहा गया और इसी का फायदा उठाकर कट्टरपंथी महिलाओं को हिजाब पहनने के लिए बाध्य करते हैं। 1990 के दशक से, जब सद्दाम हुसैन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के जवाब में अपना विश्वास अभियान शुरू किया, तो महिलाओं पर हिजाब पहनने का दबाव व्यापक हो गया। देश पर अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन के आक्रमण के बाद, इस्लामी पार्टियों के शासन में महिलाओं की स्थिति और खराब हो गई, जिनमें से कई के ईरान के साथ घनिष्ठ संबंध हैं।

इराक पर ईरान का काफी प्रभाव
साल 2004 में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ड डब्ल्यू बुश ने दावा किया था, कि इराकी महिलाएं 'अब स्वतंत्रता का स्वाद चख रही हैं', लेकिन असलियत उनके दावे से ठीक उलट था। इराकी महिलाएं महिलाएं इस्लामवाद, सैन्यीकरण और आदिवासीवाद द्वारा कायम पितृसत्ता के तले दबी जा रहीं थीं और इराक पर ईरान का प्रभाव भी लगातार बढञता जा रहा था। फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, एक महिला ने कहा कि, साल 2003 में बगदाद में बिना हिजाब के घर से बाहर जाना मेरे लिए हर दिन का एक संघर्ष बन गया। इराक में ज्यादातर जगहों पर सांप्रदायिक हिंसा के बीच रूढ़िवादियों का वर्चस्व बढ़ता चला गया और फिर बिना हिजाब पहनने महिलाओं का घर से बाहर निकलना दूभर हो गया। महिला ने कहा कि, "मध्य बगदाद में मेरे विश्वविद्यालय के चारों ओर हिजाब समर्थक पोस्टर और बैनर के फ्लैशबैक ने मुझे हमेशा परेशान किया है। दो दशकों में स्थिति अपरिवर्तित बनी हुई है, प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में कथित तौर पर बच्चों और छोटी लड़कियों पर हिजाब लगाने के बाद ही प्रवेश करने दिया जाता है।

स्कूलों में भी जबरन हिजाब
इराकी पब्लिक स्कूलों में जबरन हिजाब पहनने के खिलाफ एक नया अभियान सोशल मीडिया पर सामने आया है। महिलाओं के लिए महिला समूह में एक प्रमुख कार्यकर्ता नथिर ईसा, जो अभियान का नेतृत्व कर रही हैं, उन्होंने कहा कि, हिजाब को समाज के कई रूढ़िवादी या आदिवासी सदस्यों द्वारा पोषित किया जाता है और अब हिजाब पहनने की अनिवार्यता के खिलाफ प्रतिक्रिया होना निश्चित हो गया है। हालांकि, ज्यादातर ऑनलाइन कैन्पेन को सरकार दबा देती है, वहीं सोशल मीडिया पर हैशटैग #notocompulsoryhijab के साथ पोस्ट करने वाली महिलाओं और लड़कियों को इस्लाम का दुश्मन बताया जाता है और उन्हें समाज विरोधी बताकर उनके खिलाफ सख्त प्रतिक्रिया दी जाती है। इसी तरह के आरोप ईरानी महिलाओं पर लगाए जाते हैं जो अपने सिर पर स्कार्फ उतारकर या जलाकर शासन की अवहेलना करती हैं। इराकी शिया धर्मगुरु, अयाद जमाल अल-दीन ने अपने ट्विटर अकाउंट पर विरोध प्रदर्शन करने वाली ईरानी महिलाओं को "हिजाब-विरोधी वेश्या" करार दिया, और उन्हें इस्लाम और संस्कृति को नष्ट करने वाली बताया।

औरतों के खिलाफ ऑनलाइन कैम्पेन
महिलाओं का कहना है कि, अगर अरब देशों में महिलाएं ऑनलाइन हिजाब के खिलाफ आवाज उठाती हैं और हिजाब हटाने या फिर हिजाब को जलाने की बात करती हैं, उनके खिलाफ भी ऑनलाइन कैन्पेन चलाया जाता है। जो महिलाएं हिजाब को अस्वीकार करने के लिए अपने सोशल मीडिया अकाउंट का इस्तेमाल करती हैं, उन्हें अक्सर सेक्सिस्ट हमलों और धमकियों का सामना करना पड़ता है जो उन्हें शर्मसार करने और चुप कराने का प्रयास करते हैं। जो लोग हिजाब उतारने के अपने फैसले के बारे में खुलकर बात करती हैं, उन्हें सबसे कठोर प्रतिक्रिया मिलती है। हिजाब को महिलाओं के सम्मान और पवित्रता से जोड़ा जाता है, इसलिए इसे हटाना अवज्ञा के रूप में देखा जाता है। जबरन हिजाब के साथ महिलाओं का संघर्ष और उनके खिलाफ प्रतिक्रिया प्रचलित सांस्कृतिक आख्यान को चुनौती देती है जो कहती है कि हिजाब पहनना एक स्वतंत्र विकल्प है।

ईरान से महिलाओं को मिल रही आवाज
अनिवार्य हिजाब पहनने के खिलाफ ईरानी महिलाओं का आक्रोश, वो भी सरकार की बर्बर कार्रवाई के बाद भी, उसने अरब देशों की महिलाओं को हिजाब की अनिवार्यता से लड़ने को लेकर दृढ़ किया है और ईरानी महिलाओं का संघर्ष अब रंग लाने लगा है। अब दूसरे मुस्लिम देशों की महिलाएं को भी लगने लगा है, कि हिजाब उनके ऊपर जबरन थोपा गया है और वो उनके पास इन्हें पहनने की अनिवार्यता से मना करने का हक है। ईरान और इराक में सामूहिक आक्रोश ने अन्य महिलाओं के दिलों में कट्टर शासन के खिलाफ अपनी आवाज उठाने का साहस दिया है, लिहाजा अब महिलाएं बिना डर के सोशल मीडिया पर हिजाब के खिलाफ लिख रही हैं और महिलाओं को पूरी उम्मीद है, कि एक दिन के उनके सिर से हिजाब की अनिवार्यता खत्म होगी और वो खुली हवा में सांस ले पाएंगी।

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